सोमवार, 4 मई 2020

एक हस्ताक्षर…पद्मश्री डॉ.व्ही.एस. वाकणकर



चित्र साभार  - आस्था कपिल चौबे 
        “ वाकणकर जी एक बार रेल यात्रा कर रहे थेकि रास्तें में उन्होंने कुछ गुफ़ाओं और चट्टान्नो को देखाअपने साथियों से पूछने पे उन्हें पता चला की यह एक भीमबेटका नामक स्थान है तथा यहाँ गुफा की दीवारों पर कुछ चित्र बने हुए हैलेकिन जंगली पशुओं के भय से वहाँ कोई जाता नहीं हैजैसे ही उन्होंने यह बात सुनी उनकी आँखो में चमक  गई और जैसे ही ट्रेन की गति धीमीं हुई वो ट्रेन से उतर गए और फिर कई घंटो की चढ़ाई चढ़ने के बाद वे उन पहाड़ियों पर पहुचें और इस तरह पहली बार संसार से इस महान धरोहर का परिचय कराया” बहुत समय पहले जब मै अपनी एम. की पढ़ाई कर रही थीतब इंटरनेट पर कुछ नोट्स ढूँढते हुए मैंने वाकणकर जी पर आधारित एक लेख पढ़ा था और उस पूरे लेख मेंयही अंश मुझे हमेशा के लिए याद रह गया। यूँ तो मैंने वाकणकर जी के बारे काफ़ी कुछ पढ़ा हैउनकी लिखी किताबों का भी अध्यन किया हैपर जिस बात ने मेरे अंदर उन्हें और जानने की जिज्ञासा को बढ़ावा दिया वो यही थीकि किस तरह एक व्यक्ति अपने कार्य के प्रति जूझारू और समर्पित हो सकता हैमै हमेशा अकेले में बैठे यही सोचती रहती हूँ कि क्या होता यदि उस दिन उस ट्रेन में वाकणकर जी जगह कोई और साधारण सी सोच रखने वाला कोई निष्क्रिय व्यक्ति बैठा होता और वो इस चर्चा का भागीदार होतातो क्या हमें भीमबेटका जैसी महान धरोहर मिल पातीक्या होता यदि वो चर्चा भी आम चर्चाओं की तरह यूँ ही हवा में उछाल दी जाती और इतिहास का इतना महान और महत्तवपूर्ण पन्ना अछूता रह जाता। लेकिन ये हम सब का सौभाग्य था कि उस दिन उस ट्रेन में बैठे उस व्यक्ति ने अपने देश की बहुमूल्य संस्कृति को पहचान लिया और उसे हम सब को बड़े ही प्यार और विश्वास से सौंप दियाजब कभी भी मै इस घटना के बारे में सोचती हूँ तो सहज ही एक धन्यवाद की हँसी मेरे चेहरे पर उमड़ आती है 
मैंने कहीं पढ़ा था की “महान बनने के लिए महान सोच का होना और उसे कार्यन्वित्त करने का जोश होना बहुत ज़रूरी होता है एसे ही विरले व्यक्तित्व थे डॉव्हि.एस.वाकणकरजिनकी महान सोच और बेमिसाल कार्यकुशलता उन्हें  सिर्फ़ भारतीय पुरातत्व नहीं बल्कि विश्व पुरातत्व का एक सशक्त हस्ताक्षर बनाती है। आज उनकी 100वीं वर्षगाँठ पर मै अपनी भावनाओं के श्रद्धा सुमन उन्हें अर्पित करती हूँ और साथ ही धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ देश तथा विदेश के सभी पुरातत्व्वेत्ताओं तथा इतिहासकारों का जिनके अथक प्रयासों और परिश्रम की वजह से पूरा विश्व अपनी संस्कृति तथा अपने इतिहास से परिचित हो पाता है। यही वे लोग है जो हमें हमारी जड़ें देते हैक्यूँकि जिस तरह बिना आधार के कोई भी चीज़ हवा में खड़ी नहीं रह सकती उसी तरह संस्कृतियों के विकास के लिए इतिहास का आधार आवश्यक है। 
आज के इस पावन अवसर पर मै सम्पूर्ण मानव जाती के तरफ़ से डॉव्हि.एस.वाकणकर जी को शत्-शत् नमन करती हूँऔर धन्यवाद करती हूँ उस युगपुरूष का जिनकी अनेक खोजों ने हमें इतिहास का वृहद ख़ज़ाना दिया। 

पूजा आनंद 
कला शिक्षिका 
केंद्रीय विद्यालय क़्र 2 
एन टी पी सी - कोरबा 

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